लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 अर्थशास्त्र

बीए सेमेस्टर-3 अर्थशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2640
आईएसबीएन :000000000

Like this Hindi book 0

बीए सेमेस्टर-3 अर्थशास्त्र : सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित आधुनिक समाजवाद के मुख्य सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित मुख्य सिद्धान्त
(Important Theories Propounded by Karl Marx)

कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित प्रमुख सिद्धान्त / विचारधाराये निम्नलिखित हैं -

1. इतिहास का भौतिकवादी निर्वाचन (Materialistic Interpretation of History) - ऐतिहासिक भौतिकवाद को एक वैज्ञानिक धारणा कहा जाता है तथा यह मानव इतिहास का भौतिक आधार पर विवेचन करती है। मार्क्स के मत मे समाज के भौतिक जीवन के चरण प्रमुखतया समाज की संरचना, सम्बन्ध, धर्म, कला, राजनीतिक संस्थाओं आदि को निर्धारित करते हैं। सामाजिक संस्थाएँ, आर्थिक परिस्थितियों, विशेष रूप से उत्पादन प्रणाली द्वारा निर्धारित व प्रभावित होती है। इस विद्वान ने सामाजिक, परिवर्तनों को आर्थिक कारणों से संचालित माना है। कार्ल मार्क्स अनुसार यद्यपि भौगोलिक परिस्थितियों, जनसंख्या वृद्धि आदि का भी मानव जीवन पर प्रभाव पड़ता है परन्तु ये सब सामाजिक परिवर्तनों के निर्णायक कारक हैं। ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या मानव-जीवन को बनाये रखने वाले भौतिक मूल्यों (भोजन, कपड़ा, मकान आदि) को प्राप्त करने वाली उत्पादन प्रणाली पर आधारित है। मार्क्स के मत में उत्पादन प्रणाली का प्रभाव ही इतिहास की घटनाओं को तय करता है।

प्रत्येक समाज एक विशिष्ट उत्पादन प्रणाली का ही प्रतिनिधित्व करता है। कार्ल मार्क्स के अनुसार, “सामाजिक सम्बन्ध उत्पादन- शक्तियों से घनिष्ठ रूप से जुड़े हैं। नवीन उत्पादन- शक्तियों को समाप्त करने में लोग अपनी उत्पादन प्रणाली को बदल लेते हैं और अपनी उत्पादन- प्रणाली को बदलने में, अपनी जीविका के साधन को बदलने में वे अपने समस्त सामाजिक सम्बंधों को बदल लेते हैं। हाथ की चक्की का फलं सामन्तवादी समाज है और भाप की चक्की का परिणाम औद्योगिक पूँजीवादी समाज है।”

समाज के विकास का इतिहास उत्पादन प्रणाली के विकास का इतिहास है। उत्पादन शक्ति तथा मनुष्य के उत्पादन सम्बन्ध इतिहास को तय करते हैं। यदि कोई इतिहासकार यह अध्ययन करना चाहता है कि किसी क्षेत्र विशेष व काल- विशेष में क्या कठिनाई हुई तो उसे उस समय की आर्थिक प्रणालियों और सामाजिक संरचना की वैज्ञानिक खोज करने की आवश्यकता होगी।

2. द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद (Dialetical Materialism) - मार्क्स का यह विचार है जिसके अन्तर्गत उसने परिवर्तनों के उस क्रम की व्याख्या की है जिसके अनुसार भौतिक संसार में परिवर्तन होते रहते हैं। मार्क्स का यह विचार हीगल दर्शन पर आधारित है। हीगल के अनुसार विरोधात्मक शक्तियों तथा हितों में संघर्ष के कारण ही समाज में परिवर्तन होते हैं और अन्ततः इनमें एकरूपता स्थापित हो जाती है। आपसी संघर्ष के कारण विरोधी तत्त्व एक नये तथा उत्तम विचार में परिवर्तन हो जाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक आरम्भिक स्थिति दूसरी विरोधी स्थिति को जन्म देती है और इन दोनों के संघर्ष के फलस्वरूप एक नयी परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसी प्रकार परिवर्तनों का क्रम चलता रहता है। मार्क्स के अनुसार यह बात इतिहास से भली-भाँति स्पष्ट हो जाती है कि कोई भी मानवीय एवं सामाजिक संस्था स्थायी नहीं होती।

3. पूँजीवादी व्यवस्था पर विचार (Views on Capitalism) - कार्ल मार्क्स ने पूँजीवादी व्यवस्था का गहन एवं वैज्ञानिक अध्ययन करके अपने विचार दिए। मार्क्स के अनुसार पूँजीवाद की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) उत्पादन के साधनों पर श्रमिकों का स्वामित्व न होने से श्रमिकों को उनके स्वामित्व से वंचित रहना पड़ता है।

(ii) पूँजीवादी प्रणाली में समाज के मुख्य रूप से दो वर्ग पूँजीपति तथा श्रमिक होते हैं। (iii) पूँजीवादी व्यवस्था में बड़े पैमाने के उद्योगों का बोलबाला होता है।

(iv) उत्पादन लाभ की दृष्टि से किया जाता है न कि सामाजिक हित की दृष्टि से।

(v) पूँजीवाद का सर्वप्रमुख लक्षण श्रम का शोषण होना है।

4. मूल्य का श्रम सिद्धान्त (Labour Theory of Value) - मूल्य सिद्धान्त से समाज में, वस्तुओं के विनिमय अनुपात, उत्पादन की मात्रा व विभिन्न उद्योगों में श्रम का वितरण एक साथ निर्धारित होते रहते हैं। मार्क्स के अनुसार "चूँकि व्यक्तिगत पूँजीपति एक-दूसरे से केवल वस्तुओं के स्वामियों के रूप में मिलते हैं और उसमें से प्रत्येक अपनी वस्तु अधिक से अधिक मूल्य पर बेचना चाहते हैं। इसलिए आन्तरिक नियम व इनकी पारस्परिक प्रतियोगिता एक-दूसरे पर दबाव के द्वारा अपना प्रभाव दिखाते हैं, जिससे विभिन्नताएँ समाप्त हो जाती हैं। केवल एक आन्तरिक नियम के नाते और व्यक्तिगत साधक के दृष्टिकोण से एक अन्धे नियम के नाते मूल्य अपना प्रभाव डालता है और आकस्मिक उच्चावचनों के बीच उत्पादन का सामाजिक साम्य बनाये रखता है। इस प्रकार यह श्रम के आधार पर निर्धारित होने वाला मूल्य पूँजीवाद में समस्त व्यक्तियों को एक सूत्र में बनाये रखने का कार्य करता है और पूँजीपतियों के व्यक्तिगत श्रम को वास्तविक कुल सामाजिक श्रम में परिवर्तित करता है।

इस सिद्धान्त से मार्क्स ने वस्तुओं के जादू सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। मार्क्स ने स्पष्ट किया कि आज हम एक वस्तु का मूल्य दूसरी वस्तु में आंकते हैं, लेकिन यह भूल जाते है कि इन दोनों वस्तुओं का आपसी सम्बन्ध उनको बनाने वाले श्रमिकों पर आधारित है। इस प्रकार हम समाज के विभिन्न सदस्यों के सम्बन्धों को याद रखते हैं। इसे मार्क्स ने वस्तुओं का जादू सिद्धान्त कहा है। मार्क्स ने वस्तुओं के इस जादू को समाप्त कर स्पष्ट रूप से यह बता दिया कि विनिमय मूल्य समाज के विभिन्न सदस्यों के परस्पर सम्बन्धों पर आधारित है न कि वस्तुओं के आपसी सम्बन्ध पर।

4. अतिरेक मूल्य सिद्धान्त (Theory of Surplus Value) - मार्क्स का विचार है कि मजदूरी प्रणाली में मजदूरी के भुगतान द्वारा श्रमिक को अपनी वस्तु से पूर्णतः अलग कर दिया जाता है। मजदूरी, वह मूल्य है जो पूँजीपति श्रम-शक्ति के उपयोग के लिए देता है। मजदूरी देकर पूँजीपति उस अधिकार को प्राप्त कर लेता है जिसके द्वारा वह जिस प्रकार भी चाहे श्रम द्वारा उत्पन्न वस्तु को बेच सकता है। मजदूर का वास्तविक मूल्य वह मजदूरी नहीं होती जो उसे दी जाती है

बल्कि उस राशि से कहीं अधिक होता है। उसने बताया कि किसी भी वस्तु के समान, श्रम का मूल्य भी उसको उत्पन्न करने के लिए आवश्यक श्रम घण्टों की संख्या के अनुसार निर्धारित होता है। इसलिए श्रम का मूल्य श्रम को उस मात्रा से मापा जाता है जो उन वस्तुओं के उत्पादन में लगता है जिनकी आवश्यकता श्रमिक को अपनी उत्पादन शक्ति बनाये रखने के लिए होती है। एक उदाहरण द्वारा इसको स्पष्ट किया जा सकता है यदि हम श्रमिक के स्थान पर एक मशीन का उदाहरण लें और किसी इंजीनियर से किसी मशीन विशेष के संचलान सम्बन्धी खर्चों को बताने के लिए कहें, तो वह यह कहेगा कि उस मशीन के संचालन के लिए घण्टे में 80 किग्रा. कोयले की आवश्यकता पड़ेगी और क्योंकि कोयले का मूल्य केवल मानव श्रम की निश्चित मात्रा का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए मशीन के संचालन व्यय को भी श्रम के शब्दों में ही व्यक्त किया जा सकता है। इसको हम निम्नलिखित समीकरण द्वारा समझ सकते हैं -

VL (श्रम का मूल्य) = CL (श्रम की लागत)

तथा CL = QS (वस्तुओं की वह मात्रा जो श्रम के भरण-पोषण के लिए आवश्यक है)

इसलिए VL = QS

किन्तु श्रमिक जिसका विनिमय मूल्य QS को उत्पन्न करने वाले श्रम की मात्रा में आँका जाता है, स्वयं QS से भी अधिक उत्पन्न करता है। इसी आधिक्य को मार्क्स ने अतिरेक मूल्य (Surplus Value) कहा है।

5. मार्क्सवादी कार्यक्रम (The Marxian Programme) - मार्क्स ने व्यक्तिगत सम्पत्तियों को ही सामाजिक दोषों का मूल कारण मानते हुए बताया कि ये व्यक्तिगत सम्पत्ति ही है जो कि श्रमिकों का पूँजीपतियों के हाथों शोषण कराती है। व्यक्तिगत सम्पत्ति का उन्मूलन किया जाना ही वैज्ञानिक समाजवाद का मुख्य लक्ष्य है। व्यक्तिगत सम्पत्ति का उन्मूलन होने पर एक वर्गविहीन और शोषण रहित समाज की स्थापना हो सकती है।

कार्ल मार्क्स ने व्यक्तिगत सम्पत्ति के उन्मूलन के लिए उत्पत्ति के साधनों के राष्ट्रीयकरण का सुझाव दिया। उत्पत्ति के साधनों को श्रमिकों को दे दिया जाये जिससे उत्पादन श्रमिकों द्वारा सामूहिक रूप से किया जायेगा और लाभ, इन्ही के मध्य बांट दिया जायेगा। इस प्रकार राष्ट्रीयकरण बचत, श्रम व अतिरिक्त मूल्य को समाप्त कर देगा। परन्तु मार्क्सवादी केवल उस सम्पत्ति के पक्ष में थे, जो उत्पादन कार्य में सक्रिय सहयोग प्रदान करके श्रमिकों व उपभोक्ताओं का शेषण कराती है।

6. आर्थिक विकास का मार्क्सवादी सिद्धान्त (Marxian Theory of Economic devolopment) - इस सिद्धान्त की प्रमुख बाते निम्नलिखित हैं।

1. कार्ल मार्क्स ने अपना विवेचन एक सरल पुनरुत्पादन योजना से शुरू किया है, जिसमें पूँजी संचयन का अभाव रहता है। सरल पुनरुपादन का आशय यह है कि जो पूँजी अतिरिक्त मूल्य को प्राप्त करने के लिए विनियोग की जाती है, वह उसी रुप में पुनः नियोजित जाय तथा अतिरिक्त मूल्य वृद्धि अवश्य प्रकट हो। यदि पूँजीपति इसका पूर्णतः उपभोग कर लें तो सरल उत्पादन होगा।

2. मार्क्स ने सरल पुनरुत्पादन योजना का विचार यह बताने के लिए दिया कि विकास के लिए संचयन आवश्यक है न कि उपभोग। सरल पुनरुत्पादन योजना में कोई संचयन नहीं होता इसलिए अर्थव्यवस्था स्थिर अवस्था में रहती है। जब पूँजीपति वर्ग अतिरिक्त मूल्य में से संचय करते हैं, तब विकास होता है। पूँजीपति इसलिए संचय करता है ताकि एक पूँजीपति के रूप में उसकी स्थिति बनी रहे। मार्क्स ने लिखा है, “संचय करो, संचय करों यही ब्रह्म आदेश है। “अतः पूँजी संचय विकास के लिए आवश्यक होता है।

3. यदि संचय प्रारम्भ होता है तो श्रम की मांग बढ़ती है और इस वृद्धि में पूँजीपतियों के काम से खतरा उत्पन्न हो जाता है। इसलिए पूँजीपति मजदूरी को जीवन निर्वाह स्तर तक रखना चाहते हैं। पूँजीपति अतिरिक्त श्रमशक्ति का सृजन करते हैं, जिसे मार्क्स ने श्रम की सुरक्षित फौज कहा है।

4. मशीनों के अधिक प्रयोग तथा उत्पादन के बड़े पैमाने के कारण अनुचित प्रतियोगिता से छोटे पूँजीवादियों की संख्या घट जाती है। इससे उत्पत्ति के साधनों का स्वामित्व केवल थोड़े से बड़े पूँजीपतियों के हाथों में हो जाता है।

कुछ पूँजीपतियों द्वारा ही सम्पूर्ण उत्पत्ति के साधनों का नियंत्रण करने के फलस्वरूप एकाधिकारी पूँजीवाद का जन्म होता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारत के प्राचीनकालीन आर्थिक विचारधारा के प्रमुख स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
  2. प्रश्न- कौटिल्य रचित 'अर्थशास्त्र' में 'कल्याणकारी राज्य' की परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- कौटिल्य की पुस्तक 'अर्थशास्त्र' में उल्लेखित विषयों की व्याख्या कीजिए।
  4. प्रश्न- प्राचीन भारतीय आर्थिक विचारधारा की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं?
  5. प्रश्न- अर्थशास्त्र में उल्लिखित 'कृषि तथा पशुपालन' विषय पर टिप्पणी लिखिए।
  6. प्रश्न- कौटिल्य के राजस्व के संबंध में विचारों पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- कौटिल्य के सार्वजनिक वित्त संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- कौटिल्य के कल्याणकारी राज्य की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- कौटिल्य के अनुसार, करारोपण राज्य के लिए क्यों आवश्यक है?
  10. प्रश्न- भारत में 19वीं शताब्दी में आर्थिक विचारधारा का विकास किन बातों से प्रभावित हुआ?
  11. प्रश्न- नरौजी के प्रमुख आर्थिक सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  12. प्रश्न- दादा भाई नौरोजी के निर्धनता सम्बन्धी विचार को समझाइये |
  13. प्रश्न- 'निष्कासन सिद्धान्त (The Drain Theory)' पर टिप्पणी कीजिए।
  14. प्रश्न- रोमेश चन्द्र दत्त का सामान्य परिचय दीजिए।
  15. प्रश्न- रोमेश चन्द्र दत्त के कृषि सम्बन्धी विचारों का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- "भारत की निर्धनता का कारण ब्रिटिश सरकार की शोषण नीति है।" रोमेश दत्त के इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
  17. प्रश्न- "लगान की ऊँची दर भारतीय कृषि की दुर्दशा का एक प्रमुख कारण है।" स्पष्ट कीजिए।
  18. प्रश्न- रोमेश दत्त के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर के आर्थिक विचारों की व्याख्या कीजिए।
  20. प्रश्न- डॉ. राम मनोहर लोहिया के प्रमुख आर्थिक विचारों की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- गाँधी जी के 'समाजवाद' दर्शन का वर्णन कीजिए।
  22. प्रश्न- गाँधीजी और नेहरू जी के आर्थिक विचारों की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- गाँधीवाद तथा साम्यवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  24. प्रश्न- गाँधीजी के प्रमुख आर्थिक विचारों की विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- गाँधीजी के मशीन सम्बन्धी विचारों को बताइये।
  26. प्रश्न- "नेहरूवाद मार्क्सवाद और गाँधीवाद का विवेकपूर्ण सम्मिश्रण है।" संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  27. प्रश्न- पंडित दीनदयाल उपाध्याय की आर्थिक नीति की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- पं. दीनदयाल उपाध्याय भारी उद्योगों को अमानवीय और तानाशाही प्रकृति का मानते थे। क्यों? स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- पं. दीनदयाल उपाध्याय की विकेन्द्रीकृत अर्थव्यवस्था की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- पं. दीनदयाल उपाध्याय के समग्र मानवतावाद के दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- दीन दयाल उपाध्याय की एकीकृत आर्थिक नीति की व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- अर्थशास्त्र में 'आवश्यकता विहीनता' की परिभाषा के जन्मदाता प्रो. जे. के. मेहता हैं। इनके आर्थिक विचार समझाइए।
  33. प्रश्न- अमर्त्य सेन के 'निर्धनता' सम्बन्धी विचार लिखिए।
  34. प्रश्न- वैश्वीकरण पर अमर्त्य सेन के विचारों का विश्लेषण कीजिए।
  35. प्रश्न- विश्व व्यापार प्रणाली के सन्दर्भ में भगवती के विचारों का विश्लेषण कीजिए।
  36. प्रश्न- व्यापार उदारीकरण पर भगवती के विचारों का वर्णन कीजिए।
  37. प्रश्न- प्लेटो के प्रमुख आर्थिक विचारों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- प्लेटो और अरस्तू के आर्थिक विचारों की तुलना कीजिये तथा आर्थिक विचारों के इतिहास में अरस्तू का महत्व बताइये।
  39. प्रश्न- प्राचीन आर्थिक विचारधाराओं की प्रमुख विशेषताएँ कौन-कौन सी थीं?
  40. प्रश्न- प्लेटो के 'साम्यवाद' की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  41. प्रश्न- सेण्ट थॉमस एक्विनास के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- उचित कीमत (Just price) सम्बन्धी सन्त थॉमस एक्विनास के विचारों का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- सन्त थॉमस एक्विनास के श्रम विभाजन सम्बन्धी विचारों की समीक्षा कीजिए।
  44. प्रश्न- वणिकवाद के उदय के मूल कारकों पर प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- 'वणिकवाद' के पतन के प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- उन परिस्थितियों का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए जिन्होंने वणिकवाद को बढ़ावा दिया और जो इसके पतन का कारण बनीं।
  47. प्रश्न- वणिकवाद के सिद्धान्त एवं नीतियाँ लिखिये।
  48. प्रश्न- वाणिकवाद से क्या आशय है?
  49. प्रश्न- वणिकवादी दर्शन के मुख्य तत्त्व क्या थे?
  50. प्रश्न- वणिकवाद का आर्थिक विचारों के इतिहास में क्या महत्व है?
  51. प्रश्न- वणिकवाद के ब्याज के सिद्धांत की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  52. प्रश्न- नव-वणिकवाद के उदय के कारण क्या हैं? संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- पुराने वणिकवाद तथा नव-वणिकवाद में समानताएँ क्या हैं?
  54. प्रश्न- सोना चाँदी का महत्व बताइये।
  55. प्रश्न- वणिकवाद की एक राष्ट्रीय नीति के सन्दर्भ में चर्चा कीजिए।
  56. प्रश्न- वणिकवादियों के 'राज्य सम्बन्धी विचार' क्या थे? स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- 'वणिकवाद एवं राज्य समाजवाद' पर टिप्पणी कीजिए।
  58. प्रश्न- थॉमस मून के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  59. प्रश्न- प्रकृतिवाद क्या है? प्रकृतिवादी वणिकवादियों का क्यों विरोध करते हैं?
  60. प्रश्न- प्रकृतिवाद और वणिकवाद के अर्थशास्त्रीय दर्शन में क्या मूलाधारीय अन्तर है? उनके समाज की आर्थिक दशाओं में प्रकृतिवादियों की देन की व्याख्या कीजिये।
  61. प्रश्न- प्रकृतिवाद के उदय के कौन-कौन से कारण उत्तरदायी थे?
  62. प्रश्न- आर्थिक तालिका अथवा धन के परिभ्रमण से क्या आशय है?
  63. प्रश्न- आर्थिक तालिका की दुर्बलताओं की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  64. प्रश्न- 'प्रकृतिवादी सिद्धान्त' क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  65. प्रश्न- समान त्याग के सिद्धान्त से क्या अभिप्राय है?
  66. प्रश्न- "सहयोगी समाजवादी" से क्या तात्पर्य है?
  67. प्रश्न- सर विलियम पैटी के आर्थिक विचारों का वर्णन करें।
  68. प्रश्न- तुर्गो (Turgot) के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- लॉक के मूल्य सम्बन्धी विचारों का वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- लॉक के सम्पत्ति सम्बन्धी विचारों का वर्णन कीजिए।
  71. प्रश्न- लॉक के मुद्रा सम्बन्धी विचारों का वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- लॉक का विदेशी व्यापार सम्बन्धी व्यापार संतुलन के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- "डेविड ह्यूम (David Hume) को मुद्रावाद का सूत्रधार कहा जाता है।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  74. प्रश्न- एडम स्मिथ की पुस्तक 'राष्ट्रों का धन' (Wealth of Nations) का तत्कालिक आर्थिक विचारधारा पर क्या प्रभाव पड़ा?
  75. प्रश्न- एडम स्मिथ के आर्थिक विचारों के विकास में योगदानों का विवरण दीजिए तथा उनके, आर्थिक सिद्धान्तों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  76. प्रश्न- एडम स्मिथ की व्यवस्था के अन्तर्गत " श्रम विभाजन" और "बाजार के विस्तार" की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  77. प्रश्न- 'परम्परावाद' क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- आर्थिक विचारों के इतिहास में स्मिथ के स्थान को चिन्हित कीजिए।
  79. प्रश्न- अहस्तक्षेप नीति क्या है?
  80. प्रश्न- स्मिथ के सिद्धान्तों का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  81. प्रश्न- स्मिथ का आशावाद क्या है?
  82. प्रश्न- एडम स्मिथ के पूँजी संचय सम्बन्धी विचारों का वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- वितरण सम्बन्धी एडम स्मिथ के विचारों का विश्लेषण कीजिए।
  84. प्रश्न- एडम स्मिथ के व्यापार सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  85. प्रश्न- एडम स्मिथ के आशावाद पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  86. प्रश्न- स्मिथ के प्रकृतिवाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  87. प्रश्न- "रिकार्डों का मुख्य योगदान मूल्य सिद्धान्त तथा वितरण सिद्धान्त के क्षेत्र में है। " व्याख्या कीजिए।
  88. प्रश्न- रिकार्डो के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
  89. प्रश्न- उन परिस्थितियों का वर्णन कीजिये जिनसे प्रकृतिवाद का जन्म हुआ। प्रकृतिवाद का आर्थिक विचारों में क्या योगदान है?
  90. प्रश्न- रिकार्डों के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सिद्धान्त की चर्चा कीजिए।
  91. प्रश्न- डेविड रिकार्डों के 'मजदूरी सिद्धान्त' पर टिप्पणी कीजिए।
  92. प्रश्न- रिकार्डों का तुलनात्मक लागत सिद्धान्त बताइए।
  93. प्रश्न- रिकार्डों की प्रसिद्ध पुस्तक 'The Principles of Political Economy and Taxation' पर टिप्पणी लिखिए।
  94. प्रश्न- रिकार्डो के लगान सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
  95. प्रश्न- माल्थस के 'जनसंख्या सिद्धान्त' की व्याख्या कीजिए तथा इसकी आलोचनाओं को बताइए।
  96. प्रश्न- नव-माल्थसवाद क्या है? इसके प्रमुख आर्थिक विचारों की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  97. प्रश्न- अति उत्पादन तथा लगान पर माल्थस के विचारों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  98. प्रश्न- माल्थस के 'लगान' सम्बन्धी विचार को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- माल्थस के 'प्रभावी माँग के सिद्धान्त' का विश्लेषण कीजिए।
  100. प्रश्न- माल्थस और रिकार्डो को निराशावादी क्यों कहा जाता है? स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- माल्थस के विचारों को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक क्या थे? विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- 'मार्क्स अन्तर्राष्ट्रीय समाजवाद के पिता के रूप में था।' स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद' को स्पष्ट कीजिए।
  104. प्रश्न- मार्क्स के 'अतिरेक मूल्य सिद्धान्त' की व्याख्या कीजिए तथा इसकी प्रमुख आलोचनाओं को स्पष्ट कीजिए।
  105. प्रश्न- मार्क्स के आर्थिक विघटन सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिए।
  106. प्रश्न- "मार्क्सवाद परम्परावाद के तने पर उगी हुई शाखा मात्र है।" उक्त कथन की व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- क्या कार्ल मार्क्स को प्रतिष्ठित सम्प्रदाय का अर्थशास्त्री माना जा सकता है? विस्तार से समझाइए।
  108. प्रश्न- सहयोगी समाजवाद, राज्य समाजवाद और वैज्ञानिक समाजवाद की तुलना कीजिए और उनका अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  109. प्रश्न- कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित आधुनिक समाजवाद के मुख्य सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  110. प्रश्न- सिसमाण्डी के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- "सिसमाण्डी समाजवादी विचारक था। " सिद्ध कीजिए।
  112. प्रश्न- मार्क्सवाद की विचारधारा के मूल तत्त्व कौन-कौन से थे?
  113. प्रश्न- मार्क्सवाद की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  114. प्रश्न- वर्ग संघर्ष पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  115. प्रश्न- जे. एस. मिल के प्रमुख आर्थिक विचारों का उल्लेख कीजिए।
  116. प्रश्न- जे. एस. मिल के आर्थिक विचारों पर प्रभाव डालने वाले मुख्य घटकों की विवेचना कीजिए।
  117. प्रश्न- जे आर. हिक्स के विचारों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  118. प्रश्न- "मिल के द्वारा परम्परावादी अर्थशास्त्र पूर्ण रूप से विकसित किया गया और उसी के साथ उसका पतन प्रारम्भ हुआ।" इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  119. प्रश्न- जे. एस. मिल परम्परावादी सिद्धान्तों के किन-किन नियमों से सहमत तथा किन-किन नियमों से असहमत था? स्पष्ट कीजिए।
  120. प्रश्न- जे. एस. मिल के स्वहित सिद्धान्त की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  121. प्रश्न- जे. एस. मिल के स्वतन्त्रता प्रतियोगिता के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  122. प्रश्न- जे. एस. मिल के जनसंख्या सिद्धांत की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  123. प्रश्न- मिल के समाजवादी विचारों की आलोचना कीजिए।
  124. प्रश्न- 'जे. एस. मिल समाजवादी था'। इस कथन के पक्ष में तर्क दीजिए।
  125. प्रश्न- जे. एस. मिल के आर्थिक विचारों का मूल्यांकन कीजिए।
  126. प्रश्न- जे. बी. से के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  127. प्रश्न- जे. एस. मिल के मजदूरी सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  128. प्रश्न- मिल के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  129. प्रश्न- 'मूल्य व वितरण' के क्षेत्र में मार्शल के योगदान का वर्णन कीजिए।
  130. प्रश्न- स्पष्ट व्याख्या कीजिए कि नव-परम्परावाद क्या है? इस सन्दर्भ में मार्शल के आर्थिक सिद्धान्त के क्षेत्र में योगदान का विश्लेषण कीजिए।
  131. प्रश्न- नव परम्परावाद क्या है? परम्परावादी एवं नव परम्परावादी विचारों में अन्तर बताइये।
  132. प्रश्न- प्रकृतिवाद को जन्म देने वाली शक्तियों की व्याख्या कीजिए तथा आर्थिक विचारधारा में उसका मुख्य योगदान बताइये।
  133. प्रश्न- मार्शल के निरंतरता सिद्धांत पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- मार्शल के आभास लगान के संबंध में विचारों की विवेचना कीजिए।
  135. प्रश्न- प्रतिनिधि फर्म के विषय में मार्शल के विचारों पर प्रकाश डालिए।
  136. प्रश्न- मार्शल ने अल्पकालीन व दीर्घकालीन विवाद के हल को कैसे सुलझाया?
  137. प्रश्न- परम्परावादी तथा नवपरम्परावादी विचारों में अन्तर कीजिए।
  138. प्रश्न- मार्शल के उपयोगितावाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  139. प्रश्न- शुद्ध उत्पत्ति का सिद्धान्त बताइए।
  140. प्रश्न- राबिन्स के विचारों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  141. प्रश्न- पीगू के आर्थिक कल्याण सम्बन्धी विचारों का विश्लेषण कीजिए।
  142. प्रश्न- पीगू ने अर्थशास्त्र का क्षेत्र निर्धारण किस प्रकार किया है?
  143. प्रश्न- पीगू के रोजगार सम्बन्धी विचार का वर्णन कीजिए।
  144. प्रश्न- पीगू के समाजवादी विचारों का वर्णन कीजिए।
  145. प्रश्न- शुम्पीटर के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  146. प्रश्न- सीमान्तवाद क्या है? सीमान्तवादियों का अर्थशास्त्र में क्या योगदान रहा है?
  147. प्रश्न- क्रूनो के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  148. प्रश्न- मूल्य निर्धारण के सम्बन्ध में क्रूनो के विचारों का विश्लेषण कीजिए।
  149. प्रश्न- गोसेन के आर्थिक विचारों पर प्रकाश डालिए।
  150. प्रश्न- जेवन्स के मूल्य सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  151. प्रश्न- प्रो. एल. वालरा (वालरस) के बाजार सन्तुलन सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  152. प्रश्न- सिसमण्डी के आर्थिक विचारों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिये।
  153. प्रश्न- सीमान्तवादी क्रान्ति की व्याख्या कीजिए तथा इस सम्बन्ध में मेंजर के विचारों की विवेचना कीजिए।
  154. प्रश्न- जेवन्स के प्रमुख आर्थिक विचारों की विवेचना कीजिए।
  155. प्रश्न- कार्ल मेंजर के द्रव्य सम्बन्धी विचारों को संक्षेप में लिखिए।
  156. प्रश्न- विकस्टीड के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  157. प्रश्न- वालरस के उपयोगिता सम्बन्धी विचार का वर्णन कीजिए।
  158. प्रश्न- वालरस के साम्य सम्बन्धी विचारों का वर्णन कीजिए।
  159. प्रश्न- कार्ल मेंजर के आर्थिक विचारों पर प्रकाश डालिए
  160. प्रश्न- कार्ल मेंजर के विनिमय सम्बन्धी विचारों का वर्णन कीजिए।
  161. प्रश्न- कार्ल मेंजर के अनुसार वस्तुओं के वर्गीकरण का विश्लेषण कीजिए।
  162. प्रश्न- कार्ल मेंजर के मुद्रा सम्बन्धी विचारों का विश्लेषण कीजिए।
  163. प्रश्न- जेवेन्स के मूल्य सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए।
  164. प्रश्न- जेवेन्स के आर्थिक विचारों का विश्लेषण कीजिए।
  165. प्रश्न- यूजिन वॉन बाम बावर्क के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  166. प्रश्न- बाम बावर्क के मूल्य सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  167. प्रश्न- नटविकसेल के आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  168. प्रश्न- इविंग फिशर के प्रमुख आर्थिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  169. प्रश्न- "मुद्रा प्रसार व संकुचन दोनों हानिकारक हैं।" इविंग फिशर के इस विचार का विश्लेषण कीजिए।
  170. प्रश्न- फिशर के मुद्रा के परिमाण सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book